विघालय में ' हिन्दी अभिज्ञ समूह व हिन्दी अनभिज्ञ समूह' में दूसरी भाषा अधिगम प्रक्रिया का अध्ययन
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चॉम्स्की (१९५७) ही पहले विद्वान हैं जिन्होंने भाषा अधिगम के व्यवहार-~ वादीसिद्धांत की अपर्याप्तता को सामने रखा.
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शिक्षक भाषा के वर्णन और भाषा अधिगम प्रक्रिया के आधार परएक शैक्षिक व्याकरण की रचना करता है.
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पाठ का अर्थ है-संबद्धता, सहभागिता और बोलने का प्रोत्साहन, जो सफलतापूर्वक भाषा अधिगम का ट्रेडमार्क हैं ।
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उन्होंने यूरोपीय सन्दर्भों में हिन्दी भाषा अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया के आधार पर हुये विदेशी भाषा अधिगम के अंतर्गत संज्ञान प्रक्रिया को स्पष्ट किया।
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व्यवहारवादी तथा संरचनावादी दोनों ने ही (जिनकी मान्यताओकी नीचे चर्चा की जाएगी) भाषा अधिगम की परिकल्पना का भाषा के अधिगम तक प्रसारकिया है.
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उन्होंने यूरोपीय सन्दर्भों में हिन्दी भाषा अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया के आधार पर हुए विदेशी भाषा अधिगम के अंतर्गत संज्ञान प्रक्रिया को स्पष्ट किया।
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अतः व्यवहारवादी तथा रूपांतरणवादी परिकल्पनाओं का द्वितीय भाषा अधिगमपर पड़े प्रभाव को समझने के लिए हमें भाषा अधिगम के दोनों सिद्धांतो का परीक्षणकरना चाहिए.
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उन्होंने यूरोपीय सन्दर्भों में हिन्दी भाषा अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया के आधार पर हुये विदेशी भाषा अधिगम के अंतर्गत संज्ञान प्रक्रिया को स्पष्ट किया।
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अधिगम सिद्धांत को अपर्याप्त कहकर रद्द करना ही समीचीन नहीं होगा बल्कि इसकेस्थान पर भाषा अधिगम के किसी दूसरे सिद्धांत का प्रतिपादन भी करना चाहिए.